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आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15535
आईएसबीएन :0

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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

1

विवाह प्रगति में सहायक


कई व्यक्ति आध्यात्मिठ प्रगति में दाम्पत्य-जीवन को बाधक मानते हैं और सोचते हैं कि एकाकी रहेगे तो उन्हें वैरागी माना जायगा, भजन अच्छा बनेगा या स्वर्ग मुक्ति का लाभ जल्दी भी मिल जायगा। ऐसे लोगों को प्राचीनकाल में कृषियों के जीवन पर दृष्टिपात करना चाहिए, पुराण पढ़ने चाहिए। एक-दो को छोड़कर प्राय: सभी ऋषि गृहस्थ थे, और सबके सन्तानें थीं। सिख धर्म के प्राय: सभी ऋषि गृहस्थ हुए हैं। भगवान् राम, कृष्ण शंकर एवं समस्त देवता गहस्थ थे। यदि दाम्पत्य-व्यवस्था आध्यात्मिक प्रगति में बाधक रही होती, तो हमारा सारा इतिहास ही दूसरे ढंग का होता, गृह-त्याग की व्यवस्था तो बुद्ध सम्प्रदाय की देन है। भारतीय धर्म का अंग वह कभी नहीं रही। चार आश्रमों की व्यवस्था में हर व्यक्ति को गृहस्थ होना चाहिए। तीसरेपन में वानप्रस्थ लेकर पत्नी समेत समाज सेवा में लगना चाहिए और अन्त में संन्यास लेना हो तो भी ऋषियों की तरह उस व्यवस्था में भी पत्नी को साथ रखा जा सकता है।

कहने का तात्पर्य इतना भर है कि दाम्पत्य जीवन की श्रेष्ठता, उपयोगिता एवं आवश्यकता से इन्कार नहीं किया जा सकता है। उससे दो अभावग्रस्त पक्ष एकत्रित होकर अपनी विशेषता से दूसरे का अभाव पूरा करते और एक पूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण की व्यवस्था बनाते हैं। मानव-जन्म पाने के बाद दूसरा सबसे बड़ा सौभाग्य विवाह ही माना गया है। इसी से तो 'या बेटा जाये या बेटा विवाहे' की उक्ति के अनुसार जन्म और विवाह की खुशी को समान माना गया है। वरन् सच तो यह है कि जन्म से विवाह का आनन्द हमारे समाज में अधिक माना जाता है। जन्म के अवसर पर जितने गीत, मंगल, उत्सव, गाजे-बाजे आदि की खर्च की व्यवस्था होती है उससे कई गुनी अधिक विवाह के अवसर पर होती है। जन्म की अपूर्णता को विवाह पूर्ण करता है इसलिए आनन्द उल्लास एवं लाभ किसी भी प्रकार कम नहीं। एक बैल से खेती करना मुश्किल पड़ता है। इसी प्रकार एकाकी जीवन में असुविधायें ही भरी रहती है। असुविधा को सुविधा में, अवरोध को प्रगति में अवसाद को उल्लास में परिणत कर देने वाला विवाह सचमुच मानव प्राणी का असाधारण सौभाग्य ही है।

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    अनुक्रम

  1. विवाह प्रगति में सहायक
  2. नये समाज का नया निर्माण
  3. विकृतियों का समाधान
  4. क्षोभ को उल्लास में बदलें
  5. विवाह संस्कार की महत्ता
  6. मंगल पर्व की जयन्ती
  7. परम्परा प्रचलन
  8. संकोच अनावश्यक
  9. संगठित प्रयास की आवश्यकता
  10. पाँच विशेष कृत्य
  11. ग्रन्थि बन्धन
  12. पाणिग्रहण
  13. सप्तपदी
  14. सुमंगली
  15. व्रत धारण की आवश्यकता
  16. यह तथ्य ध्यान में रखें
  17. नया उल्लास, नया आरम्भ

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